अवसाद की दवाएं बढ़ा सकती है सीओपीडी से मौत का खतरा

अवसाद की दवाएं बढ़ा सकती है सीओपीडी से मौत का खतरा

सेहतराग टीम

क्रोनिक ऑब्‍सट्रक्‍ट‍िव पल्‍मोनरी डिजीज यानी सीओपीडी फेफड़ों की कई बीमारियों का समूह है। इनमें से कोई भी एक बीमारी मरीज को हो तो उसे सीओपीडी का मरीज की कहा जाता है। ये बीमारियां मरीज के श्‍वसन तंत्र को प्रभावित करती हैं और मरीज को हमेशा सांस की कमी महसूस होती रहती है। भारत में सीओपीडी भयानक रूप से फैली है देश में बीमारियों से होने वाली मौतों के मामले में ये दूसरे नंबर पर है। जैसा कि पहले लिखा गया है सीओपीडी केवल एक बीमारी नहीं है बल्कि फेफड़े से सबंधित कई बीमारियों का समूह है और इन बीमार‍िओं में सबसे आम एंफीसेमा और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस है। कुछ लोगों में इनमें से कोई एक बीमारी हो सकती है और कई में एक साथ ये दोनों बीमारियां हो सकती हैं।

अवसाद की दवाओं का बुरा असर

एक हालिया अध्‍ययन के नतीजे बताते हैं कि सीओपीडी के मरीज अगर एंटी डिप्रेशेंट दवाएं भी लेते हैं तो उनमें सीओपीडी से मौत का जोखिम 20 फीसदी तक बढ़ जाता है। यही नहीं इसके कारण सीओपीडी के मरीजों को अस्‍पताल में दाखिल करने की आशंका भी 15 फीसदी तक बढ़ जाती है। ये दवाएं शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली में विपरीत असर डालती हैं और मरीजों में हमेशा उनींदे रहने और उल्‍टी की टेंडेंसी को बढ़ावा देती हैं। इसके बाद मरीज किसी भी संक्रमण, सांस की समस्‍या और श्‍वसन संबंधी अन्‍य समस्‍याओं की चपेट में आ सकता है।

क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर

इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्‍यक्ष डॉक्‍टर के के अग्रवाल सेहतराग से कहते हैं, सीओपीडी बीमारियां समय के साथ हमारे शरीर में जगह बनाती हैं। ये बीमारियां होने का कारण धूम्रपान और ऐसे रसायन होते हैं श्‍वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। कुछ लोगों में ये बीमारियां आनुवंशिक भी होती हैं। करीब 5 फीसदी ऐसे होते हैं जिनमें अल्‍फा-1-एंटीट्रिप्‍सीन नामक प्रोटीन की कमी होती है और इसके कारण फेफड़े कमजोर होने लगते हैं और इसका असर समय के साथ लिवर पर भी पड़ता है। सीओपीडी की स्थिति को चरणों में बांटा गया है और ये पहले चरण से लेकर चौथे चरण तक की बीमारी होती है। समय के साथ ये बीमारी गंभीर होती चली जाती है। चौथे चरण को अंतिम चरण का सीओपीडी कहा जाता है। सीओपीडी का पता आमतौर पर मध्‍यम आयु वर्ग या फ‍िर बुढ़ापे में चलता है। ये बीमारी संक्रामक नहीं होती है यानी एक व्‍यक्ति से दूसरे में नहीं फैलती है।

लक्षण

डॉक्‍टर अग्रवाल कहते हैं कि सीओपीडी के आम लक्षणों में कफ, कफ के साथ ढेर सारा बलगम आना, सांस की कमी और वो भी खासकर चलते समय या किसी शारीरिक गतिविधि‍ के समय, सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आना और छाती में जकड़न महसूस होना शामिल हैं।

बचाव

डॉक्‍टर अग्रवाल कहते हैं कि सीओपीडी को रोकने का सबसे अच्‍छा तरीका यह है कि लोग तंबाकू के धुएं से दूर रहें। जहां तक दवाओं का सवाल है तो इन बीमारियों में ऐसी दवाएं दी जाती हैं जो सांस की नली के आस-पास के मसल्‍स को रिलैक्‍स करती हैं। इस बीमारी में सर्जरी अंतिम उपाय है और इसका इस्‍तेमाल तभी किया जाता है। नियमित रूप से सांस से जुड़े व्‍यायाम करने की जरूरत होती है। जीवनशैली में सुधार, नियमित व्‍यायाम और सिगरेट की लत छोड़ने से इस बीमारी को दूर रखने में मदद मिलती है।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।